कुम्भकर्ण
रावण ने जब सुना कि लक्ष्मण स्वस्थ हो गये तो मेघनाद से बोला—लक्ष्मण तो शक्तिबाण से भी न मरा। अब क्या युक्ति की जाय ? मैंने तो समझा था, एक का काम तमाम हो गया, अब एक ही और बाकी है, किन्तु दोनोंके-दोनों फिर से संभल गये।
मेघनाद ने कहा—मुझे भी बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि लक्ष्मण कैसे बच गया। शक्तिबाण का घाव तो घातक होता है। इक्कीस घण्टे के अन्दर आदमी मर जाता है। अवश्य उन लोगों को संजीवनी बूटी मिल गयी। खैर, फिर समझूंगा, जाते कहां हैं। आज ही दोनों को ेर कर देता, लेकिन कल का थका हुआ हूं। मैदान में न जा सकूंगा। आज चाचा कुम्भकर्ण को भेज दीजिये।
कुम्भकर्ण रावण का भाई था। ऐसा डीलडौल दूसरे सूरमा राक्षसों में न था। उसे देखकर हाथी कासा आभास होता था। वीर ऐसा था कि कोई उसका सामना करने का साहस न कर सकता था। किन्तु जितना ही वह वीर था, उतना ही परमादी और विलासी था। रातदिन शराब के नशे में मस्त पड़ा रहता। लंका पर आक्रमण हो गया, हजारों आदमी मारे जा चुके, पर उसे अब तक कुछ खबर न थी कि कहां क्या हो रहा है। रावण उसके पास पहुंचा तो देखा कि वह उस समय भी बेहोश पड़ा हुआ है। शराब की बोतल सामने पड़ी हुई थी। रावण ने उसका कंधा पकड़कर जोर से हिलाया, तब उसकी आंखें खुलीं। बोला—कैसे आराम की नींद ले रहा था, आपने व्यर्थ जगा दिया।
रावण ने कहा—भैया, अब सोने का समय नहीं रहा। रामचन्द्र ने लंका पर घेरा डाल लिया। हमारे कितने ही आदमी काम आ चुके। मेघनाद कल लड़ा था, पर आज थका हुआ है। अब तुम्हारे सिवा और कोई दूसरा सहायक नहीं दिखायी देता।
यह सुनते ही कुम्भकर्ण संभलकर उठ बैठा। हथियार बांधे और मैदान की ओर चल खड़ा हुआ। उसे मैदान में देखकर हनुमान, अंगद, सुगरीव सबके-सब दहल उठे। आदमी क्या पूरा देव था। साधारण सैनिक तो उसकी भयानक आकृति ही देखकर भाग खड़े हुए। कितने ही नायकों को उसने आहत कर दिया। आखिर रामचन्द्र स्वयं उससे लड़ने को तैयार हुए। उन्हें देखते ही कुम्भकर्ण ने भाले का वार किया। मगर रामचन्द्र ने वार खाली कर दिया और दो तीर इतनी फुर्ती से चलाये कि उसके दोनों हाथ कट गये। तीसरा तीर उसके सीने में लगा। काम तमाम हो गया। राक्षससेना ने अपने नायक को गिरते देखा तो भाग खड़े हुए। इधर रामचन्द्र की सेना में खुशी मनायी जाने लगी।
रावण को जब यह समाचार मिला तो सिर पीटकर रोने लगा। कुम्भकर्ण से उसे बड़ी आशा थी। वह धूल में मिल गयी। भाई के शोक में बड़ी देर तक विलाप करता रहा।